जैन समाज के लिए बड़ी खुशखबरी: सम्मेद शिखर पर्वत को लेकर की पवित्रता बनाए रखने को लेकर सरकार ने जारी की प्रतिबद्धता
- By Vinod --
- Wednesday, 28 Dec, 2022
Big news for Jain society
Big news for Jain society- भारत देश विविधताओं से भरा देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों का भी अस्तित्व है। धार्मिक विविधता होने के कारण यहाँ विभिन्न तीर्थ स्थल भी मौजूद है, जो भारत देश को विशेष बनाते है। इन्हीं तीर्थ स्थलों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी भी है। श्री सम्मेद शिखरजी मुख्य रूप से जैन तीर्थ स्थल है। जिसे लेकर तीर्थराज श्री सम्मेद शिखरजी में माननीय लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम जी बिरला के प्रयास से झारखंड सरकार के द्वारा तीर्थ स्थल की पवित्रता बनाए रखने हेतु नोटिफिकेशन जारी हुआ। जिसके अनुसार पारसनाथ सम्मेद शिखर पर्वत पर पुलिस की गश्त बढ़ाई जाएगी, वहां आसपास के एरिया में मांस-मदिरा की खरीद व बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाएगा व नियमों का उल्लंघन करने वाले पर कार्रवाई के आदेश जारी किए गए हैं।
आइए जानते हैं इस तीर्थस्थल के बारे में विस्तार से - History of Sammed Shikhar
पारसनाथ पर्वत विश्व में प्रसिद्ध है। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों हेतु एक अति महत्वपूर्ण स्थल है। हर वर्ष यहां लाखों जैन धर्म के अनुयायी प्रार्थना के लिए आते हैं। न सिर्फ़ जैन धर्म, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी पर्यटक के रूप में यहाँ घूमने के लिए आते हैं। श्री सम्मेद शिखरजी को सर्वश्रेष्ठ जैन तीर्थ माना जाता है।
जैन ग्रंथों की माने तो अयोध्या और सम्मेद शिखरजी , दोनों ही स्थानों का अस्तित्व इस सृष्टि के समानांतर माना जाता है। इसी वजह से दोनों को ‘शाश्वत’ भी माना जाता है। जब तीर्थयात्री सम्मेद शिखरजी की तीर्थयात्रा प्रारंभ करते हैं, तो तीर्थंकरों को याद करते हुए आगे बढ़ते हैं, जिससे उनका मन आस्था, श्रद्धा, खुशी और उत्साह से भर जाता है।
श्री सम्मेद शिखरजी का इतिहास- History of Sammed Shikhar
श्री सम्मेद शिखरजी के बारे में कोई निश्चित इतिहास प्राप्त नहीं हैं, इसलिए इसके लिए विभिन्न ग्रंथों का सहारा लिया जाता है।
तीर्थ (तीर्थस्थल) के रूप में सम्मेद शिखरजी का सर्वप्रथम संदर्भ जैन धर्म के प्रमुख बारह ग्रंथों में से एक, ज्ञानीधर्मकथा ग्रंथ में मिलता है। पार्श्वनाथचरित में भी सम्मेद शिखरजी का उल्लेख किया गया है। पार्श्वनाथचरित 12वीं शताब्दी की जीवनी है , जिसे पार्श्व ने लिखा था।
आधुनिक इतिहास की मानें, तो इस मन्दिर का निर्माण विशालदेव व वास्तुपाल ने करवाया था, जो उस समय के दरबार में मुख्य अधिकारियों में से एक थे।
जब 1950 में बिहार भूमि सुधार अधिनियम लागू हुआ, तो इसके माध्यम से शिखरजी का क्षेत्र सरकार की सम्पत्ति के रूप में आ गया। इसके बाद जैन धर्म के लोगों के इस तीर्थ स्थान के प्रति अधिकार संदेह की सीमा में आ गए। पर्यटक स्थल के रूप में सम्मेद शिखरजी का प्रयोग जैन की धार्मिक आस्था एवं मान्यताओं को प्रभावित करता है।
जैन संप्रदायों द्वारा सम्मेद शिखरजी के लिए राज्य की विकास योजनाओं के विरुद्ध एक विरोध आंदोलन शुरू किया गया था, जिसका नाम था शिखरजी बचाओ अभियान। जैनियों द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी के बुनियादी ढांचे व सम्मेद शिखरजी तीर्थ स्थल में परिवर्तन व सुधार के लिए राज्य शासन की योजनाओं का विरोध किया गया, क्योंकि शिखरजी पहाड़ी के व्यावसायीकरण से जैनियों की आस्था व श्रद्धा आहत होती है। युगभूषण सूरी ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। इस आन्दोलन की माँग थी कि सम्मेद शिखरजी पहाड़ी को राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से पूजा स्थल की मान्यता दी जाए। अन्तत: राज्य सरकार द्वारा 2018 में 26 अक्टूबर को सम्मेद शिखरजी पहाड़ी को ‘पूजा स्थल’ के रूप में मान्यता दी गई।
मान्यताएँ-
जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार जीवन में एक बार सच्चे मन से सम्मेद शिखरजी की यात्रा करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक व पशु योनि प्राप्त नहीं होती।
इस स्थान की भावपूर्ण यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा संसार के जन्म-कर्म से सम्बंधित बंधनों से आगामी 49 जन्मों के लिए मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
इस स्थान को पवित्र व सात्विक माना जाता है, जिसके प्रभाव से यहाँ के हिंसक प्रवृति वाले जानवरों , जैसे:- शेर, बाघ आदि का स्वभाव भी अहिंसक रहता है। इसलिए तीर्थयात्री बिना किसी डर के यहाँ की यात्रा करते है।
इस पवित्र स्थान को मोक्ष स्थान माना जाता हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने इस स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति की थी। माना जाता है कि अजीतनाथ जी एवं संभवनाथ जी ने सबसे पहले शिखरजी में मोक्ष की प्राप्ति की थी।
वैसे तो सालभर भक्त इस पवित्र स्थान की यात्रा के लिए आते हैं, लेकिन सर्दी के मौसम को यहाँ की यात्रा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, इसलिए इस मौसम में यहाँ भक्तों की संख्या ज्यादा होती है।
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